ऐ ज़िन्दगी !
तेरे आने से पहले कुछ खामोश थी मैं
शायद परेशान थी मैं
शायद आँखें नम करना आदत थी मेरी
शायद थोड़ी नादान थी मैं
शायद दुनिया को लेकर गलत थी मैं
शायद अहसास नहीं था तेरे होने का
पर जब तुने दी दस्तक
तो कुछ खुशनुमा नज़ारा था
चारों ओर अँधेरा और प्रकाश था मुझमें
तुने रुबरु कराया दुनिया से और
जीने का एक नया सलीका सिखलाया।
तेरे होने से मैं हूँ और मेरे होने से तू
पर क्यूँ मैं ढूँढती फिरती हूँ तुझे दूसरों में
तू तब भी थी और अब भी है
पर तब तेरे होने का एहसास न था
गम तब भी थे और अब भी है
पर गम अब कुछ कम से लगते हैं
तू कभी खुशियाँ , तो कभी गम
कभी झूठ , तो कभी सच
कभी कहानी , तो कभी हकीकत
कभी होंठों की मुस्कान, तो कभी आँखों का पानी
तेरे होने से गुलजार सी हूँ मैं
कुछ खुशनुमा, कुछ बेताब सी हूँ मैं
अब तू ही सफर और तू ही हमसफ़र
ऐ ज़िन्दगी,
अब तू ही तो है , है ना !
- विनीता
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