कभी-कभी सोचती हूँ मैं ,
क्यूँ हम कुछ बनना चाहते हैं ,
खुद को साबित करना चाहते हैं ?
क्यूँ हम अंदर से खोखले ,
बाहर से रंगीन है ?
क्यूँ तन की सजावट जरुरी है ,
मन की शांति काफी नहीं ?
क्यूँ चेहरे की मुस्कान काफी नहीं ,
औदे की चमक जरूरी है ?
क्यूँ हमारी मुस्कान हमारा धन नहीं ?
क्यूँ हमारा सुकून हमारी कामयाबी नहीं ?
क्यूँ कोई औदा बड़ा तो कोई छोटा है ?
क्यूँ राजगद्दी पाना जरुरी है ?
क्यूँ पैसों की गिनती जरुरी है ,
खुशियों की गिनती काफी़ नहीं ?
क्यूँ हमारा औदा हमारी पहचान है ,
हमारा नाम काफी नहीं ?
क्यूँ हमारा सिर्फ होना काफी नहीं ,
हमारा कुछ बनना जरुरी है ?
क्यूँ कोई सवाल नहीं पूछता ,
क्यूँ कोई अपना "क्यूँ" नहीं पूछता ?
- विनीता
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