खोज...




 ज़िन्दगी की फिसलन में फिसलती चली जा रही हूँ 
क्यूँ  मैं अपना अस्तित्व खोती चली जा रही हूँ ?

क्यूँ  मैं अपना बिम्ब देख कपकपाती चली जा रही हूँ ?
क्या मैं खुद से मुंह मोडती चली जा रही हूँ ?

क्यूँ मैं दूसरों की पनाह में खुशियाँ ढूँढती चली जा रही हूँ 
क्या मैं खुद बेरोजगार होती चली जा रही हूँ ?

                           - विनीता

Post a Comment

0 Comments

Contact Form